लहरों से चलना सीखा हैं।

लहरों से चलना सीखा हैं। 


वक़्त के पैमानें से आगे बढ़ने का जूनून अभी बाकि है मुझमे ,
ज़माने का ज़माने से रुबरु करने का हौंसला बाकि है मुझमे ,
तुझमे इतना ताक़त नहीं की मुझपे काबू कर सके,
मैंने लहरों से चलना सीखा हैं। 


चंद काँटों से तूम मुझे डराओगे क्या,
ये काँटे तो मेरे हमसफ़र जैसे हैं। 
जिस माया के भवंडर में तूम मुझे घेर रहे  हों ,
वो सूनामी तो मेरे मन के भीतर ही हर दिन दस्तक देता हैं। 
अब ना रुकेंगे ये पैर मेरे, 
तूम  ये कभी न रोक पाओगे । 
हर कदम एक कामयाबी बनेगी ,
इस ज़माने में एक कहानी बनेगी। 
अभी भी , है हिम्मत मुझमे,
वक़्त के पैमानें से आगे बढ़ने का जूनून अभी बाकि है मुझमे ,
ज़माने का ज़माने से रुबरु करने का हौंसला बाकि है मुझमे ,
तुझमे इतना ताक़त नहीं की मुझे काबू कर सके,
मैंने लहरों से चलना सीखा हैं। 

दूर रखा था तुमने मुझे - खुद को खुद से ,
अँधेरा ही अँधेरा था मेरे दिए गए नसीब में,
किया था कब्ज़ा तुमने उन हवाओ पर भी,
रोकना चाहा था तुमने उस उफनते सागर को भी,
जिस घेरे में  तुम मुझे घेरना चाहते हो,
उस घेरे की शुरुआत ही थी मुझसे। 
जन्म से पहले ही की साजिशें तुमने,
मेरे अस्तित्वा को ही मिटाना चाहते थे,
पग पग पर, हरेक मोड़ पे,
जो तुमने कोशिशे की मुझे रोकने की,
गहरे सागर से भी मोती निकाल लाने की,
अभी भी हिम्मत है मुझमे,
वक़्त के पैमानें से आगे बढ़ने का जूनून अभी बाकि है मुझमे ,
ज़माने का ज़माने से रुबरु करने का हौंसला बाकि है मुझमे ,
तुझमे इतना ताक़त नहीं की मुझे काबू कर सके,
मैंने लहरों से चलना सीखा हैं। 

संसार मुझसे, ये दुनिया मुझसे,
इस धरा की हर धारा मुझसे,
मेरा हक़ मुझसे ही, छीन के देने का ढोंग जो करते हो तुम,
संसार के हरेक सुख -दुःख का घड़ा जो मुझपे थोपते हो तुम,
कर दिया तुमने जो अब, उसको बदलना है, 
इस समय के पहिये को, दुबारा से चलना सिखाना है,
भले ये संसार तुम्हारा हो,
पर अब ये वक़्त हमारा है।  
संसार के सरे बंदिशों को अपने राहो के फूल बनाने की,
अभी भी हिम्मत है मुझमे, 
वक़्त के पैमानें से आगे बढ़ने का जूनून अभी बाकि है मुझमे ,
ज़माने का ज़माने से रुबरु करने का हौंसला बाकि है मुझमे ,
तुझमे इतना ताक़त नहीं की मुझे काबू कर सके,
मैंने लहरों से चलना सीखा हैं। 











Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

THE MERITS AND DEMERITS OF STRUCTURALISM AND POST-STRUCTURALISM AS CRITICAL CONCEPTS ACCORDING TO TERRY EAGLETON

Shakespeare’s PLOT STRUCTURE of Antony and Cleopatra: An Analysis with Historical Perspective

Beehive All Chapters and Poems' Summary Class IX