उन लफ़्जो के सैलाब से पूछो ज़नाब
उन लफ़्जो के सैलाब से पूछो ज़नाब,
क्या उनका फ़साना मुक़म्मल हुआ।
उनके दरमियाँ , सैकड़ों शब्द फींके पड़े,
क्या महशर के वक्त, उस मुफ़लिस की क़बा का अफ़साना मुक़म्मल हुआ।
ये तो वही बतायेंगे की उस परवरिश-ए-लौह-ओ-क़लम के मक़ाम क्या था,
क्या उनके गुफ़्तगू का शब-ए-ग़म का पैमाना मुक़म्मल हुआ।
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