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इंसान से अच्छे तो जानवर है साहब

इंसान से अच्छे तो जानवर है साहब , कम से कम वो नोंच के तो नहीं खाते।  बड़े ही सहमे हुए आवाज में पगलू चाचा ने मुझसे कहा।  मैं हाल में ही अपने गांव गया था तो वही पोखरा के पास पगलू चाचा से मुलाक़ात हो गयी।  कभी वो मास्टर साब हुआ करते थे अपने गांव के।  अभी मैं बात कर ही रहा था की वो अचानक से रोने लगे।  मुझसे रहा नहीं गया ,मैंने आखिर पूछ ही लिया की उस कड़क मास्टर साब की आवाज इतनी सहमी और आँखों में इतनी मायूसी क्यों हैं ? आखिर इसका कारण क्या हैं ? तभी उधर से दियाराम चाचा अपने बैलगाड़ी पर बोलते हुए गुजरे।  अरे वो परदेशी बाबू, क्यों इस पगले की बातो में उलझे हो ? अपना काम देखो------इसका कुछ न होने वाला ----माटी की काया बची है इसकी बस।  मैंने उनसे कहा - कोई बात नहीं चाचा।  मुझे कोई दिक्कत नहीं हो रही है इनसे ----और भला मास्टर साब से कैसी दिक्कत ----इनकी वजह से ही तो मैं इतना आगे बढ़ा हु ----वरना रहता यही किसी कोने में ----और बोझा ढ़ोने में ही मेरा वक़्त गुजर जाता। मैंने मास्टर साब को अपने साथ घर चलने के लिए राजी कर लिया।  यही बड़बड़ाते मास्टर साब कुछ कहने की कोशिश कर रहे थे पर मैं उन अधर शब्दों क