इंसान से अच्छे तो जानवर है साहब
अभी मैं बात कर ही रहा था की वो अचानक से रोने लगे। मुझसे रहा नहीं गया ,मैंने आखिर पूछ ही लिया की उस कड़क मास्टर साब की आवाज इतनी सहमी और आँखों में इतनी मायूसी क्यों हैं ? आखिर इसका कारण क्या हैं ? तभी उधर से दियाराम चाचा अपने बैलगाड़ी पर बोलते हुए गुजरे। अरे वो परदेशी बाबू, क्यों इस पगले की बातो में उलझे हो ? अपना काम देखो------इसका कुछ न होने वाला ----माटी की काया बची है इसकी बस।
मैंने उनसे कहा - कोई बात नहीं चाचा। मुझे कोई दिक्कत नहीं हो रही है इनसे ----और भला मास्टर साब से कैसी दिक्कत ----इनकी वजह से ही तो मैं इतना आगे बढ़ा हु ----वरना रहता यही किसी कोने में ----और बोझा ढ़ोने में ही मेरा वक़्त गुजर जाता।
मैंने मास्टर साब को अपने साथ घर चलने के लिए राजी कर लिया। यही बड़बड़ाते मास्टर साब कुछ कहने की कोशिश कर रहे थे पर मैं उन अधर शब्दों को समझने में असमर्थ था। ख़ैर , हम घर पहुंच ही गए। मैंने कमला दीदी से चाय बनाने के लिए कह दिया।
कुछ देर में चाय बनकर मेज पर आ गयी। मैंने मास्टर साब से चाय लेने के लिए बोला। कुछ हिचक सी हो रही थी मास्टर साब को --चाय लेने में। मैंने उनसे कहा - मास्टर साब , अपना ही घर समझिये। फिर मास्टर साब की आँखों में आंसू आ गए। मैंने समुन्दर को कभी चार बूंदो में सिमटते नहीं देखा था। पर आज मानो धरती फट रही थी और उसमे मास्टर साब का तेज यु ही हिन् हो रहा था।
मास्टर साब बोले - बबुआ , बड़े दिनों बाद चाय मिली है , थोड़ा मास्टराइन के लिए भी दे देना। पता नहीं कितने दिनों से एक निवाला भी नहीं खाया है उसने। भगवान भी कितना दयालु है -----जिसको जीना नहीं है उसकी ही सांसे लम्बी किये जा रहा हैं।
मैंने मास्टर साब से पूछा - मास्टर साब , इन पांच सालो में ऐसा क्या हो गया की आप इतना बदल गए ?
मास्टर साब - बबूआ , सुनामी को आने में सिर्फ कुछ मिनट का ही वक़्त लगता है ----पर उसके केहर से कई जिंदगिया सालो तक नहीं उबर पाती है। तुम्हे याद है न ----मेरी गुड़िया ?
हा मास्टर साब मुझे याद हैं। एक ही साथ तो हम पढ़ते थे। मेरा कम्पटीशन तो बस गुड़िया से ही होता था। उसका गणित बहुत तेज था।
हां बबुआ , था तो पर क्या फायदा , अब वो नहीं रही।
मैं तो मानो ---पैरो तले जमीन ख़िसक गयी हो। मैंने पूछा - ऐसा कैसे हो गया ? कउनो बीमारी वीमारी हो गयी थी क्या ? पांच साल पहले ही तो देखा था ---इतना हस्ते खेलते।
मास्टर साब - ई देश में लोग बीमारी से कम , इंसान के खाल में जानवरो से ज्यादा मरते है।
मेरे मन तो कई सवाल उठ रहे थे। मैंने फिर अपने सवालो को पेट में रख उनकी तरफ देखा , ये मेरे मास्टर साब नहीं हो सकते। इतना कैसे कोई बदल सकता है. .. . .. . .. ..
सुनो बबुआ , भले मेरा हाल कैसा भी हो.... अपने विद्यार्थी के मन को भाना अभी भी आता है मुझे। पिछले साल ही गुड़िया की शादी की थी मैंने। सब बहुत अच्छे से हो गया। फिर वो रात आयी जिसने मेरी दुनिया ही ख़त्म कर दी।
मैंने पूछा - मास्टर साब , क्या हुआ था ?
मास्टर साब ने कहा - एक रात , गुड़िया पोखरे से कपड़े धो के आ रही थीं। कपड़े ज्यादा थे तो उसे समय का पता नहीं चला और शाम का वक़्त हो गया। वो पगडंडियो से जल्दी जल्दी आ रही थी की तभी कुछ लोगो ने उसे घेर लिया। वो सब पास के ही गांव के लोग थे। उन्होंने गुड़िया को अपने साथ ले जाने की कोशिश की..... ..... पर गुड़िया वहां से भाग निकली। वो लोग उसका पीछा करते करते उसके घर तक पहुंच गए। और घर के सामने चिल्लाने लगे - अरे वो , पैसे लेके के कहा भाग गयी , ई देखो , अरे गांव वालो ----सब बाहर निकलो। ई देखो ---मास्टर की बेटी को। भला इतनी देर कोई पोखरा पर रहता है क्या ? हम तो पहले ही बोले थे ---इसका चक्कर उ मुखिया के बेटे से चल रहा हैं। बस , यही बोल के , उ लोग वहा से निकल गए। अगले दिन , गुड़िया को लोगो ने गांव के बिच बांध दिया। मैं और मास्टराइन , भागते भागते वह पहुंचे।
अरे भइया , ई हमरी बिटिया को कहे ऐसे बांधा है ? का किया है इसने ? बबुआ , तू तो एकरा के जानते होखब। ई काहे ? तभी उधर से गुड़िया के ससुर बोले - मास्टर साब , तोहार बिटिया , हमरे खानदान के इज्जत गवा देलख। एकरा त सजा मिलबे करी।
गुड़िया तो बेहोश ही हो गयी थी तब तक ----हम लोगो को कारण भी नहीं बता रहे थे ----तभी किसी ने गुड़िया पर मिट्टी तेल छिड़क दिया ----और उसके पति ने माचिस बार के आग लगा दी। हम दोनों को मानो सांप ही सूंघ गया ----पता ही नहीं चला की अचानक हमारी दुनिया ही जल के राख हो गयी। गुड़िया को जिन्दे ही जला डाला बाबू ----जिन्दा ही जला डाला। इतना कह के मास्टर साब तुरंत ही मेरे घर से निकल गए।
कुछ समय बाद , मैं सोच रहा था की मुझे मास्टर साब की कहानी पर अजीब सा क्यों नहीं लगा ?
फिर मेरे दिमाग में आया की ----मैं तो उस देश में रहता हु जहा ऐसे घटनाये रोज होती हैं। हम कैंडल मार्च भी करते है। बहुत तेज तेज नारे लगाते है ---फिर अपने घरो में बैठ जाते हैं -----और इंतजार करते है नए केस का। अरे फिर किसी के साथ ऐसा हो.... ..... कैंडल वाले की बिक्री कम हो गयी है---बेचारा भूखे मर रहा होगा। आखिर इस देश में कैंडल बेचने वालो का , पोस्टर बनाने वालो का ----ख्याल तो रखना पड़ेगा न। तो इंतजार करते है किसी और का। नाम अलग होगा पर कहानी वही। चेहरे वही होंगे पर हैवानियत के तरीके नए होंगे। हमें क्या ? हमें तो चाय और पार्ले जी के साथ कुछ चटकदार न्यूज़ चाहिए ----ताकि हम भी कह सके।
" कुछ नहीं होगा इस देश का " देखो सरकार क्या करती है।
कहानी काल्पनिक थी पर भाव नहीं।
सुनिल कुमार साह
Mast
ReplyDeleteShi baat hai
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