मैं किसान हूँ साहेब, आतंकवादी नहीं।
मैं किसान हूँ साहेब, आतंकवादी नहीं।
धरती के भीतर से सोना उगाने वाला,
भोरे - भोरे जग के सूरज को चुनौती देने वाला ,
मैं किसान हूँ साहेब , आतंकवादी नहीं।
जब चूनाव था , तब मैं ..... मैं था।
आपके भाषणों में,
आपके चुनावी वादों में,
यहां तक की
आपके मैनिफेस्टो में,
मैं किसान ही था।
फिर ऐसा क्या हुआ साहेब ,
की आप मुझसे ख़फ़ा हो गए।
जब आपके माँ-बाप ने पहला कौर खिलाया होगा
वो भी किसी किसान ने ही उगाया होगा।
बस , आपके इस जी हुजूरी का क्या कहु
इतना ही कहना चाहता हूँ की ,
मैं किसान हूँ साहेब, आतंकवादी नहीं।
मुझे इस काल्पनिक सीमा का क्या पता ,
मेरा खेत-खलिहान ही मेरी पहचान हैं।
ना मुझे पाकिस्तान , ना ही खालिस्तान का पता ,
बस, दिल में तो शुरू से ही हिंदुस्तान हैं।
आज मैं खड़ा हूँ ,
आपके पास आने के लिए,
पता नहीं किस किस से लड़ा हूँ।
देखते ही देखते ,
मुझे क्या से क्या बना दिया।
मैं तो बस इतना ही कहना चाहता हूँ की,
मैं किसान हूँ साहेब, आतंकवादी नहीं।
Comments
Post a Comment