ना जाने ये अँधेरा कब हटेगा
ना जाने ये अँधेरा कब हटेगा
आज की नई रौशनी बेहाल है
कल के सूरज पर बवाल है
भविष्य के धुंधले तस्वीर पर
वर्तमान के काले आईने पर
ये अँधेरा कब से छाया है
ना जाने ये अँधेरा कब हटेगा।
गुमराह हो रहे हैं सब धर्म के नाम से
देश बँट रहा है कुछ लोगो के कर्म के नाम से
जो अंजाम था सत्तर साल पहले
आज उसे मंजिल तक पहुंचाया जा रहा हैं जाती के नाम से
अभी भी वक्त है
इरादे भी सख्त है
फिर भी
आज की नई रौशनी बेहाल है
कल के सूरज पर बवाल है
भविष्य के धुंधले तस्वीर पर
वर्तमान के काले आईने पर
ये अँधेरा कब से छाया है
ना जाने ये अँधेरा कब हटेगा।
देश एक ,
धर्म एक ,
भाषा एक ,
पहचान एक,
फिर भी क्यों हम बँट जाते हैं
भारतीय होने से क्यों कतराते हैं
कुछ लोगो के हाथो गुमराह हो जाते हैं
जरूरत है एक नई रौशनी की
जरुरत है एक नए सूरज की
फिर भी
आज की नई रौशनी बेहाल है
कल के सूरज पर बवाल है
भविष्य के धुंधले तस्वीर पर
वर्तमान के काले आईने पर
ये अँधेरा कब से छाया है
ना जाने ये अँधेरा कब हटेगा।
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