अँधेरा हो चला हैं
अँधेरा हो चला हैं
सुबह की रौशनी अब साथ नहीं
दोपहर के धुप में अब वो बात नहीं
शाम के छाँव में अब वो ठंडक नहीं
रात के रागिनी में अब वो मंडप नहीं
कह सकते है अब
कह सकते है अब की
अँधेरा हो चला है।
जाने क्या से क्या हो गया
समय का चक्का यु कैसे घूम गया
मन में अब वो आस नहीं
दिल ही दिल को जानता है
अब वो दिल भी पास नहीं
कह सकते है
कह सकते है अब की
अँधेरा हो चला है।
दुनिया में सब कुछ है
पर,
पर दुनिया में कुछ खास नहीं
धरती पे जो फूलो का बगीचा था
उस बगीचे में अब वो बात नहीं
ज्ञान की ज्योति जो हमने पहले जलाई थी
अब उस ज्योति पर विस्वास नहीं
ये दुनिया तो अब
ये दुनिया तो अब और
दुनिया से दूर होती जा रही है
पर वापस आने का कोई आस नहीं
गहरे अँधेरे के तरफ जा रहे है सब
पर किसी को ये समझ नहीं आ रहा है की
क्या मिलेगा
उस अँधेरे में प्रकाश ढूंढने से
मैं तो अब भी वही कहूंगा
की
कह सकते है
कह सकते है अब की
अँधेरा हो चला है।
"आजकल कविता तो सब कर लेते हैं,पर तुम अच्छा लिख लेते हो!"
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