आरक्षण
आरक्षण
पल - पल हर पल
क्षण - क्षण हर क्षण
विष बनता जा रहा है
ये आरक्षण।
तुम क्या जानो
तुम क्या मानो
शहर की मूरत हो तुम
हमारे लिए तो बस एक ही
विकास का पहलू बनता जा रहा है
ये आरक्षण।
तुम करते हो दंगे
तुमने देश के विकास को रोका
सारे देश के बुद्धिजीवियों को
आरक्षण के नाम पर तुमने टोका
वो तो चले गए विदेश
रह गया पिछड़ा अपना देश
देश को बाँटता जा रहा है
ये आरक्षण।
क्यों सपने में तुम जी रहे हो
अमृत प्याला पी रहे हो
तुम्हारे पास है सारी सुविधा
फिर क्यों है तुम्हे दुविधा
कभी अपने घर से बाहर निकलो
हमारे लिए देश वही है ये तुम सोच लो
शहर नहीं गांव देखो
हमारी असली पावं देखो
अभी भी जकड़े है हम छुआ छूट के इस बीमारी से
पता नहीं कब होंगे दूर अपनी इस लाचारी से
और तुम कह रहे हो
ये तुम सोच रहे हो
की दंगे हम है करते
साहब,
हमें तो अपनी किस्मत से फुरसत नहीं
कैसे हम दंगे करते
ये तो हमारे नाम पर राजनीति है
ये तो कुछ नेताओ की देश को बाँट कर वोट बैंक बनाने की निति है
तुम क्यों बन रहे हो इनके हाथ के कठपुतली
बोलते हो इन नेताओ की जुबानी
याद करो बाबा की क़ुरबानी
देश को बाँट रहे हो तुम
एकता को काट रहे हो तुम
फिर क्यों कहते हो
फिर क्यों कहते हो
देश को बाँटता जा रहा है
ये आरक्षण।
तुम्हे प्रतियोगिता में अपने ऊपर विश्वास नहीं नही
आरक्षण के बल पर करते हो बात
कभी बिना आरक्षण आओ देश के इस भागदौड़ में
तब खाओगे हर कदम पे मात
मैं तो अब भी यहीं कहूंगा
अपनी बात पर अड़ा रहूँगा
की ,
पल - पल हर पल
क्षण - क्षण हर क्षण
विष बनता जा रहा है
ये आरक्षण।
यही बात तो असली जड़ है
तुम्हे तो अपने सुविधाओं पर अकड़ है
कभी आओ हमारे पास आओ
इस परिस्थिति में जी कर दिखाओ
अभी भी हम है दलित
पुकारते हो तुम हमें मलित
प्रकाश के इस दुनिया से बाहर
लालटेन की दुनिया में आकर
तुम लो भाग प्रतियोगिता में
तब तुम कहना
तब तुम सोचना
की
हमें प्रतियोगिता में अपने ऊपर विस्वास नहीं
फिर क्यों तुम कहते हो
रह गया पिछड़ा अपना देश
देश को बाँटता जा रहा है
ये आरक्षण।
- सुनील कुमार साह
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