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Showing posts from November, 2018

अदा तो उसे भी आती ही होगी

अदा तो उसे भी आती ही होगी प्यार का एहसास जरुरी नहीं की उसे भी करवाया जाए आँखे पढ़ने की अदा तो उसे भी आती ही होगी।  उसे देखते ही जो मुस्कान खिलती है ना  उस चमक की रौशनी उसे भी दिखाई देती होगी लेकिन, अनकहे बातो को सुनने की अदा तो उसे भी आती ही होगी।  वो एक मीठा एहसास बन गयी है, जिसे सिर्फ महसूस किया जाना ही बड़ा तस्सवूर का काम है।  लेकिन इस बारीश में भींगने की अदा .... तो उसे भी आती ही होगी।  जाने क्यों ये दिल बस में नहीं होता, इसका क्या है ? इसे खुद भी नहीं पता होता। सब कुछ जानके , अनजान बनने की  अदा ...... तो उसे भी आती ही होगी।  ये रंग कुछ और है  इसे देखकर ही नहीं, सुनकर भी महसूस कर सकते हैं।  यु आँखों से मन की बात को पढ़ लेने की अदा.......  तो उसे भी आती ही होगी।  written by  Sunil kumar sah

Light the soul through the light of knowledge

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Light the soul through the light of knowledge  The world is more than our perception,      more than our reasons. Then, what's the truth of this imaginary world? We are living in the cage of own individuality. We have forgotten that we are human beings.

क्या खूब कहा आपने।

क्या खूब कहा आपने।  सभी लड़ाइयों की जड़ हूँ मैं , हूँ मैं एक चीज़ परायी।  जन्म से ही बन गयी परेशानी , परिवार में किसी को न भायी।  इसको पढ़ा कर क्या होगा , ये तो है बस  एक ज़िम्मेदारी।  परिवार की दुखो की वजह , है ये एक महामारी।  बस करो, अब बहुत हुआ।  आपके सोच की गहराई नाप ली मैंने  इस पर  मैं  क्या कह सकती हूँ  बस , धन्यवाद करना चाहूँगी  वाह , क्या खूब कहा आपने। 

आसान नहीं है ज़नाब

आसान नहीं है ज़नाब  हमेशा चेहरे पर मुस्कुराहट रखना  आसान नहीं है ज़नाब। एक नक़ाब के पीछे खुद को छुपाना  आसान नहीं है ज़नाब।  भाषा की आवाज तो सब सुनते है  पर दिल की बात को दबाये रखना  आसान नहीं है ज़नाब।  आजकल तो ये हालात है .....  रावण को बाहर से दिखा के वाह वाही लूटना पड़ता हैं पर  ऐसे में राम को अंदर छुपाये रखना  आसान नहीं हैं जनाब। 

आज फिर उसी मोड़ पे खड़ा हूँ

आज फिर उसी मोड़ पे खड़ा हूँ आज फिर उसी मोड़ पे खड़ा हूँ   जिसे छोड़े ज़माना हो गया था।  आज फिर वही हवाएं चल रही थी......  फिर वही तराने भी थे.....  पर उस रास्ते का जख्म इतना गहरा था, की आगे बढ़ने की हिम्मत ही नहीं हुई।  हां , आज मैं फिर उसी मोड़ पे खड़ा हूँ, क्या फिर से उसी रास्ते  पर  चलू  जिसने  मुझे  पैमानें  में  उतारा  था ? क्या फिर से  मैं  उसी  मंजिल  के  पीछे  जाऊ  जिसने  मुझे  खुद  से  जुदा  किया  था ? फिर से वही आयाम  हैं  .....  पर अब  इतनी  हिम्मत  नहीं  है  की  खुद को  फिर  से  संभाल  पाउँगा   बस  अब  और  नहीं  अब  से  नहीं  कहूंगा  कभी  की  आज फिर उसी मोड़ पे खड़ा हूँ   जिसे छोड़े ज़माना हो गया था।