आज फिर उसी मोड़ पे खड़ा हूँ
आज फिर उसी मोड़ पे खड़ा हूँ
आज फिर उसी मोड़ पे खड़ा हूँ
जिसे छोड़े ज़माना हो गया था।
आज फिर वही हवाएं चल रही थी......
फिर वही तराने भी थे.....
पर उस रास्ते का जख्म इतना गहरा था,
की आगे बढ़ने की हिम्मत ही नहीं हुई।
हां , आज मैं फिर उसी मोड़ पे खड़ा हूँ,
क्या फिर से उसी रास्ते पर चलू
जिसने मुझे पैमानें में उतारा था ?
क्या फिर से मैं उसी मंजिल के पीछे जाऊ
जिसने मुझे खुद से जुदा किया था ?
फिर से वही आयाम हैं .....
पर अब इतनी हिम्मत नहीं है की
खुद को फिर से संभाल पाउँगा
बस अब और नहीं
अब से नहीं कहूंगा कभी की
आज फिर उसी मोड़ पे खड़ा हूँ
जिसे छोड़े ज़माना हो गया था।
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