कुछ तो अपना सा है
कुछ तो अपना सा है
सुबह की सूरज की लाली में
माँ के हाथो की थाली में
कुछ तो अपना सा है
शाम की धूमिल निगाहों में
उन लाल फुलों के बाँहों में
कुछ तो अपना सा है
दुनिया के इस नए चेहरे में
उम्र के इस पहरे में
कुछ तो अपना सा है
बहती नदियों के धारो में
आसमान के अनन्त ऊंचाई में
अनुभव के इस सच्चाई में
कुछ तो अपना सा है
kya bat hai sunil
ReplyDeletelajawab ...
thank you
Deletetumhe ab ek kavitao ki book likhni chahiye sunil
ReplyDeletebest wishes for your upcoming successful life ....
ji ha bilkul
Deletemai KDP ke bare me abhi soch raha hu
bahut jald hi mai apni novel publish karunga KDP ke through
bs aap logo ka support chahiye
hm tumhare sath hai sunil
Deletekeep going on