आख़िर क्यों ?
क्यों मैं उन बातों को याद करके खो जाता हूँ
उस वक्त के किनारे पे,
जिसके फलक पे,
मेरी किस्मत का अंजाम लिखा था |
क्यों मै उन्हीं लम्हों के बंधन में उलझ जाता हूँ
जो उन ठंडी हवाओं के
साथ
मेरे उन ख़ामोशियों के साथ
मुझमे ही क़ैद रह गये थे |
आख़िर क्यों
मैं अभी भी उसी वक्त के किनारे पे ,
उन्हीं ख़ामोशियों के साथ,
उसी जगह पर खड़ा हु
आख़िर क्यों ????????????
उस वक्त के किनारे पे,
जिसके फलक पे,
मेरी किस्मत का अंजाम लिखा था |
क्यों मै उन्हीं लम्हों के बंधन में उलझ जाता हूँ
जो उन ठंडी हवाओं के
साथ
मेरे उन ख़ामोशियों के साथ
मुझमे ही क़ैद रह गये थे |
आख़िर क्यों
मैं अभी भी उसी वक्त के किनारे पे ,
उन्हीं ख़ामोशियों के साथ,
उसी जगह पर खड़ा हु
आख़िर क्यों ????????????
waah Zanaab! bahut behatreen.
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